ज्ञान की आवश्यकता एवं महत्त्व
ज्ञान का सत्य उसकी व्यावहारिक उपयोगिता में निहित है। मानव जीवन की समस्त विकृतियाँ, अनुभव होने वाले सुख-दुःख, अशान्ति आदि सबका मूल कारण अज्ञानता ही है। यह मनुष्य का परम शत्रु है। प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो के अनुसार, “ अज्ञानी रहने से जन्म न लेना ही अच्छा है क्योंकि अज्ञान ही समस्त विपत्तियों का मूल है।" इस तरह अज्ञान जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। यही जीवन की समस्त विकृतियों और कुरूपता का कारण है। कुरूपता का सम्बन्ध मनुष्य के शारीरिक बनावट से न होकर अविद्या और अज्ञान से उत्पन्न होने वाली बुराइयों से है। समस्त विकृतियों, बुराइयों, शारीरिक, मानसिक अस्वस्थता का कारण अज्ञान और अविद्या ही है।
अतः विद्या और अज्ञानता के निवारण के लिए ज्ञान की महती आवश्यकता है। संसार के स्वरूप को समझने और उसमें उपस्थित विभिन्न समस्याओं का हल करने की क्षमता 'ज्ञान' को प्राप्त है। यही इसकी आवश्यकता और महत्व है। ज्ञान की आवश्यकता और महत्त्व को हम अग्रलिखित रूप क्रमबद्ध कर सकते हैं-
1. ज्ञान संसार का सर्वोत्कृष्ट और पवित्र तत्त्व है ज्ञान इस संसार का सर्वोत्कृष्ट और पवित्र तत्त्व है। गीता में कहा गया है कि, "इस संसार में ज्ञान के समान और कुछ भी पवित्र नहीं है।"
2. ज्ञान, जीवन का बहुमूल्य धन है: ज्ञान ही जीवन का बहुमूल्य धन है क्योंकि सभी प्रकार की भौतिक शक्तियों का नाश निश्चित समय पर हो जाती हैं किन्तु ज्ञान रूपी धन प्रत्येक स्थिति में मनुष्य के पास रहता है और दिनों-दिन विकास को प्राप्त करता है।
3. ज्ञान जीवन का प्रकाश-बिन्दु है: ज्ञान अमोघ शक्ति है जिसके समक्ष सभी इन्द्रियाँ निष्प्रभ हो जाती हैं। ज्ञात जीवन का प्रकाश-बिन्दु है जो मनुष्य को सभी इन्द्रों और अन्धकाररूपी दीवारों से निकालकर शाश्वत पथ पर आग्रसर करता है।
4. ज्ञान मनुष्य के चरित्र और व्यावहारिक जीवन को उत्कृष्ट बनाता है ज्ञान मनुष्य के चरित्र और व्यावहारिक जीवन को उत्कृष्ट बनाता है। ज्ञानी शुभ आचरण करके अपने आन्तरिक और बाह्य जीवन को पवित्र और उत्कृष्ट बना लेता है। वेदव्यास के अनुसार, "ज्ञान जीवन के सत्य का दर्शन नहीं कराता बल्कि वह मनुष्य को बोलना एवं व्यवहार करना सिखाता है।"
5. ज्ञान मनुष्य को सत्य का दर्शन कराता है ज्ञान का ध्येय सत्य है और सत्य ही आत्मा का लक्ष्य है। गीता के अनुसार, "बहुत जन्मों के अन्त के बाद ज्ञानी ही मुझे पाता है।"
बहना जन्म नामन्ते ज्ञानवान् माम प्रपद्यते।
6. ज्ञान दूसरों का मार्गदर्शन करता है ज्ञान की साधना करना, उसके अनुसार आचरण करना, अपने उपार्जित ज्ञान से दूसरों का मार्गदर्शन कराना ज्ञान यज्ञ कहलाता है। ज्ञान-यज्ञ को गीता में सर्वोत्कृष्ट बताते हुए कहा गया है कि
" श्रेयान्द्रव्य मयाद्य जाग्ज्ञान यज्ञः परंतप ।
सर्व कमां खिलं पार्थ, जाने परिसमाप्यते।"
7. ज्ञान मानव जीवन के कर्त्तव्यों का बोध कराता है ज्ञान आत्मा की अमरता का परमात्मा की न्यायशीलता का और मानव जीवन के कर्त्तव्यों का बोध कराता है। ज्ञान के द्वारा ही सुविचारों पर चलने, दुष्कर्मों के प्रति घृणा एवं सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
8. ज्ञान, अज्ञानता को दूर करता है ज्ञान की उपलब्धि से अज्ञानता का निवारण होता है। ज्ञान से मनुष्य की समस्त विकृतियाँ, बुराइयाँ तथा शारीरिक, मानसिक अस्वस्थता दूर हो जाती है। ज्ञान, मनुष्य के अन्दर अज्ञानतारूपी अन्धकार को दूर कर उसकी आत्मा को प्रकाशित कर देता है।
9. ज्ञान मानव जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक ज्ञान के द्वारा मनुष्य अपने जीवन के स्वरूप तथा अन्तिम उद्देश्यों को जानकर उसे प्राप्त कर सकता है। ज्ञान के द्वारा मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने का उपाय स्वयं जान जाता है और उसी ज्ञान के आधार पर अपना मार्ग बनाता है।