हरितगृह प्रभाव या ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect)


 

हरितगृह प्रभाव या ग्रीन हाउस प्रभाव    (Green House Effect)

   हरितगृह जागरूकता मानव समाज के लिए एक परिचित शब्द है। हरितगृह से तात्पर्य ऐसे गृह से हैं जिसकी छतें या दीवारें काँच या पारदर्शी प्लास्टिक जैसे ऊष्मारोधी पदार्थों से बनी होती हैं। सरल शब्दों में, ग्रीन हाउस का तात्पर्य उस भवन से है जिसमें शीशे की दीवारें और छत होती हैं। इस प्रकार के गृह का प्रयोग मुख्य रूप से देशों या प्रदेशों में उष्ण कटिबन्धीय पौधों को सुरक्षित रखने और उनकी अभिवृत्ति के लिए किया जाता है। हरितगृह में सूर्य का प्रकाश प्रकाशीय ऊर्जा के रूप में काँच या प्लास्टिक के बने गृह में प्रकाश तो कर जाता है लेकिन प्राकृतिक रूप से पेड़-पौधों के लिए आवश्यक ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में शीघ्र ही परिवर्तित भी हो जाता है और ऊष्मारोधी छतें और दीवारें होने के कारण ऊष्मीय ऊर्जा बाहर नहीं जा पाती। इस प्रकार ग्रीन हाउस का प्रयोग पेड़-पौधों को जीवित रखने के लिए किया जाता है।

                इसी प्रकार पृथ्वी पर वनस्पतियों और समस्त प्राणियों के जीवन हेतु आवश्यक ऊष्मीय ऊर्जा की सहायता से प्राकृतिक रूप से तापक्रम में बने रहने की प्रक्रिया हरितगृह प्रभाव या ग्रीन हाउस इफेक्ट के नाम से जानी जाती है।

कॉलिन्स कॉबिल्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, "ग्रीन हाउस प्रभाव पृथ्वी पर तापमान में निरन्तर वृद्धि होने की समस्या है। क्योंकि सूर्य से आने वाले ताप को पृथ्वी पर रोक तो लिया जाता है पर उसे वायुमण्डल के बाहर नहीं निकला जा सकता।"

        इस प्राकृतिक व्यवस्था में पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश के रूप में आने वाली प्रकाशीय ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर जब पृथ्वी से अन्तरिक्ष में वापस लौटने लगती है तो ऐसी स्थिति में आयुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें उस उम्मीय ऊर्जा को अवशोषित कर लेती है और परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक तापमान को बनाए रखने वाली प्रक्रिया में जो गैसें सहायक होता हैं उन पैसों के ग्रीन हाउस गैसों के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः ग्रीनहाउस प्रभाव का कारण मुख्यतः ग्रीन हाउस गैस (कार्बन डाइऑक्साइड स्मोग पैसे मिथेन सहित), जल बाप्प और बर्फ के कण होते हैं, औ वायुमण्डल में अपनी एक पर्व का आवरण बना लेते हैं। ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड का स्थान प्रमुख है और कार्बन डाइऑक्साइड के आवरण के प्रभाव के कारण ही पृथ्वी पर आवश्यक तापन की प्रक्रिया हरितगृह प्रभाव के नाम से जानी जाती है। 

A. Ryabchiko ने अपनी पुस्तक The changing face of the Earth में ग्रीन हाउस इफेक्ट को'Hothouse Effect" नाम दिया है और कहा है, "कार्बन डाइऑक्साइड मुख्यतः पृथ्वी की सतह तथा अपने बीच एक ऐसा सम्भाग (घर) तैयार कर लेती है जिसमें तापमान में वृद्धि होती है।"

ऑक्सफोर्ड शब्दकोष में हरितगृह प्रभाव को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया गया है, "वायुमण्डल में मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड के आवरण प्रभाव (Blanketting Effect) के कारण पृथ्वी की सतह के प्रगामी तापमान (Progressine Warming) को हरितगृह प्रभाव कहते हैं।" 

   यदि प्राकृतिक रूप से यह आवरण नहीं होता तो यह ग्रह एक ठण्डा ग्रह होता और इस पर जीवन असम्भव होता; अतः कहा जा सकता है कि हरितगृह प्रभाव के प्राकृतिक रूप के कारण ही आज पृथ्वी पर समस्त जीवों का जीवन बना हुआ है।

हरितगृह गैसें और उनके प्रमुख स्रोत 

        वैज्ञानिकों ने अब तक लगभग 30 हरितगृह गैसों की पहचान की है जिनमें से कुछ गैस लाखों वर्षों से हैं। प्रमुख गैसों में कार्बन-डाइऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन हैं। अब इसमें प्रमुखता से क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स और जुड़ी हैं। इनका उल्लेख निम्नलिखित हैं-

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) : इस गैस की हरितगृह प्रभाव में सर्वाधिक प्रमुखता है। जीवाश्म ईंधन के जलने से 80% और अवन्यीकरण से 20% इस गैस के वृद्धि के मुख्य कारण है।

मीथेन (CH): वायुमण्डल की एक तिहाई मीथेन दलदल और कीचड़ से स्वतः उत्पन्न होती है। अन्य कारणों में पशु-गोबर, मृत पशु, चावल के खेत मनुष्य के मल-मूत्र और अवन्यीकरण हैं।

जलवाष्प (H2O) : जल के कण भाप के रूप में सभी गैसों को बाँधने में सहायक होते हैं। वायुमण्डल में इसकी उपस्थिति जल वाष्पीकरण से होती है। 

नाइट्स ऑक्साइड (NO): इस गैस के निर्माण में नाइट्रोजन खाद के उत्सर्जन, ऐंजिन्स के आन्तरिक दहन तथा जीवाश्म ईंधन के दहन प्रमुख हैं।

ओजोन (O): ओजोन स्ट्रेटोसफीयर (समतापमण्डल) में पृथ्वी की सुरक्षा कवच का कार्य करता है, पर इसे uv किरणों द्वारा विघटित कर दिया जाता है। पृथ्वी की ऑक्सीजन के भाग में ओजोन से निकली अणु ऑक्सीजन पृथ्वी सतह पर ओजोन की सान्द्रता में वृद्धि करती है और ग्रीन हाउस गैस के रूप में कार्यरत हो जाती है।

क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC's) : यह गैस रेफ्रीजरेटर्स, एअरकण्डीशनर्स के निर्माण, प्लास्टिक उद्योग, एरोसोल्स के रूप में काम आती है। एक बार वायुमण्डल में रिसने पर अनेक वर्षों तक नष्ट नहीं होती है।

ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के अनेक स्रोत हैं, जिनकी चर्चा यहाँ की जा रही है -

(i) हरितगृह गैसों के उत्पादकों में विद्युत उत्पादन केन्द्र का नाम सार्वधिक मुख्य स्रोत के रूप में लिया जाता है। विद्युत उत्पादन के लिए विद्युत हाउसों में खनिज तेल और कोयले का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसें अत्यधिक मात्रा में निर्गत होकर वायुमण्डल में पहुँचती हैं।

(ii) हरितगृह गैसों में सर्वप्रमुख रूप से CO, के अत्यधिक उत्सर्जन का एक अन्य प्रमुख स्रोत घरेलू उपयोग में ईंधन के रूप में लाई जाने वाली लकड़ियाँ हैं। वनस्पतियाँ कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रमुख अवशोषक स्रोत मानी जाती हैं लेकिन वन विनाश से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा में वृद्धि होती है। यहाँ ध्यातव्य है कि वायुमण्डल की कुल अनुमानतः 250 हजार मिलियन टन CO, में केवल 10,000 मिलियन टन CO, ही ऐसी मात्रा है जिसका दुष्प्रभाव आँका जा रहा है। बढ़ते उद्योग अत्याधिक ईंधन दहन अन्य कार्यकलापों से इस मात्रा में कुछ वृद्धि सम्भव है। पुराने आँकड़ों के अनुसार CO, की वायुमण्डल में मात्रा इस शताब्दी के प्रारम्भ में 280) PPM (0.28%) थी, जो वर्ष 1980 में 320 PPM (0.032%) हो गई। मानव गलतियों से इसमें निरन्तर वृद्धि हो रही है। ऐसा अनुमान है कि पिछले 100 वर्षों में CO, की मात्रा में 14% को वृद्धि होने से वर्ष 2020 तक 340 PPM (0.034%) हो जाएगी।              हरितगृह गैसों का अन्य प्रमुख स्रोत डीजल और पेट्रोल के प्रयोग में हो रही असीमित वृद्धि है। आज विभिन्न उद्योगों में कोयला तथा पेट्रोलियम पदार्थों का खूब प्रयोग हो रहा है। डीजल और पेट्रोल से चलने वाले अनगिनत साधन; जैसे-बसें, ट्रक, मोटरसाइकिल, स्कूटर आदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जकों की श्रेणी में आते हैं।


ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि का प्रभाव 

        ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं - 

1. जलवायु में परितर्वन वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्ष 2025 तक आज की तुलना में 10° सेल्सियस तापमान की वृद्धि हो जाएगी और जब तापमान में वृद्धि होगी तो जलवायु में परिवर्तन आने लगेगा। तापमान बढ़ने पर वाष्पीकरण अधिक होगा और उत्तरी अक्षांशों में शीत ऋतु में बर्फ पिघलने लगेगी। सूर्य की रोशनी के परावर्तन में कमी आएगी। इससे तापमान में और अधिक वृद्धि होगी।

2. ऊर्जा के स्त्रोतों पर प्रभाव पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि होने से जल तथा ईंधन के लिए लकड़ी का अभाव हो जाएगा। जल की कमी से विद्युत उत्पादन भी प्रभावित होगा। 

3. समुद्र के जलस्तर में वृद्धि तापमान में वृद्धि से ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम पिघलना प्रारम्भ हो जाएगा, जिससे समुद्रों का जल स्तर ऊँचा उठेगा। वैज्ञानिकों का विचार है कि अगली सदी तक याद ऐसी ही दशाएँ, रहीं तो हर दस वर्ष बाद समुद्रतल 65 सेमी ऊंचा उठेगा। ऐसा होने पर समुद्रतटीय भाग जलमग्न हो जाएँगे तथा अधिकांश द्वीप जल में डूब जाएँगे। 

4. वृक्षों तथा कृषि उपजों पर प्रभाव तापमान में वृद्धि तथा कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि से वर्तमान वनस्पतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सूखे एवं उच्च तापमान के कारण वनस्पति की वर्तमान जातियाँ लुप्त हो जाएँगी और उनके स्थान पर अलाभकारी वनस्पतियों में वृद्धि होने लगेगी।


हरितगृह गैसों के दुष्प्रभाव से बचाव के उपाय 

    हरितगृह गैसों के दुष्प्रभाव से बचने के निम्नलिखित उपाय हो सकते हैं - 

(i) जीवाश्म ईंधन; जैसे-डीजल, पेट्रोल, कोयला आदि का उपयोग कम किया जाए और इनके वैकल्पिक साधनों; जैसे-सी०एन०जी० गैस या मेथेनाल आदि के प्रयोग को व्यावहारिक बनाया जाए।

(ii) व्यक्तिगत ऊर्जा व्यय में खपत कम करने की आदत डालें, यथा कारों के बजाय बसों को अत्यधिक उपयोग करें। 

(iii) कृषि उत्पादनों को बढ़ावा दिया जाए। इससे हरितगृह गैस के प्रभाव से बचा जा सकता है।

(iv) आम जन को ऊर्जा के महत्त्व को तथा उससे होने वाले दुष्परिणामों से परिचित कराया जाए। उनको यह समझाने का प्रयास किया जाए कि साइकिल का प्रयोग उत्तम एवं श्रेष्ठ है। 

(v) हरितगृह गैसों के दुष्प्रभाव से बचने का सबसे प्रभावी उपाय है वृक्षारोपण अधिकाधिक वृक्षारोपण हो और वर्तमान में लगे वृक्षों की सुरक्षा की जाए। यह वृक्ष CO, को अवशोषित कर हरितगृह प्रभाव की समस्या को कम करेंगे। एक अनुमान के अनुसार सम्पूर्ण धरती का 30% क्षेत्रफल बन्य क्षेत्रों के रूप में समुचित प्रयास द्वारा यदि आच्छादित कर दिया जाए तो लगभग 60% तक हरित गैसों के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।

(vi) क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC's) के प्रयोग वाले साधनों का इस्तेमाल रोका जाए।

(vii) विकसित और विकासशील देशों में औद्योगिकीकरण की गति पर लगाम लगाने का प्रयास किया जाना चाहिए और साथ ही साथ प्राकृतिक और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाए।

(viii) उपर्युक्त सारी स्थिति से सारे लोगों को अवगत कराने का प्रयास किया जाए।