वायु प्रदूषण (Air Pollution)


 
Air Pollution वायु प्रदूषण


    
       मानव की अनेक क्रियाओं के फलस्वरूप वायु में जो हानिकारक परिवर्तन आते हैं उन्हें वायु प्रदूषण के अन्तर्गत लिया जाता है अर्थात् जब वायुमण्डल में दूषित गैसों की वृद्धि हो जाती है तो ऐसी स्थिति में वायुमण्डल में दूषित गैसों की वृद्धि हो जाती है तो ऐसी स्थिति में वायु प्रदूषित हो जाती है। वायु प्रदूषण को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है, "वायु प्रदूषण उन परिस्थितियों सीमित रहता है जहाँ बाहरी परिवेशी वायुमण्डल में दूषित पदार्थों की सान्द्रता मनुष्य तथा पर्यावरण को हानि पहुंचाने की सीमा तक बढ़ जाती है।" उपर्युक्त परिभाषा को हम निम्नलिखित शब्दों द्वारा समझ सकते है-वायु में मिलने वाले अति ठोस द्रव्य या गैसीय तत्त्व जिनकी अधिकता या कमी के कारण जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों तथा मनुष्यों के स्वास्थ्य एवं क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वायु प्रदूषण की स्थिति की ओर इशारा करते हैं।
     
    थार्किस हेनरी ने वायु प्रदूषण को परिभाषित करते हुए लिखा है, "जब वायुमण्डल में बाह्य स्रोतों से विविध प्रदूषक, यथा- धूल, गैस, दुर्गन्ध, धुआँ, धुन्ध और वाष्प आदि इतनी मात्रा और अवधि में उपस्थित हो जाए कि उससे वायु के नैसर्गिक गुण में अन्तर आ जाए तथा उससे मानव स्वास्थ्य, सुखी जीवन और सम्पत्ति का नुकसान होने लगे और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आ जाए तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं।"
 
      आज पूरा विश्व वायु प्रदूषण की चपेट में है। वायु प्रदूषण में वाहनों की भूमिका मुख्य है। वाहनों से निकलने वाली अनेक प्रकार की गैसें (कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड) ओजोन परत को भारी क्षति पहुँचा रही हैं। इसके अतिरिक्त, कृषि रसायन, परमाणु ऊर्जा, कल-कारखानों से निकलने वाले धुएँ, वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई भी वायु प्रदूषण के मुख्य कारक हैं। इन सभी के कारणों से वायुमण्डल में पाई जाने वाली गैसों के प्रतिशत में परिवर्तन होता रहता है और ऐसी स्थिति में पर्यावरण असन्तुलन की स्थिति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगत होती है।
              वैसे तो औपचारिक दृष्टि से वायु पृथ्वी तल से लगभग 1,000 किमी० तक होती है, पर व्यावहारिक रूप से इसका अधिकांश भाग 250 किमी० तक सिमटा होता है। 
        वायुमण्डल में सन्तुलन की अवस्था में पाई जाने वाली जो गैसें हैं उनका प्रतिशत इस प्रकार है- जेनान(Xe)-0.000009 ; ओजोन (Og)-0.000001 ; क्रिप्टान (Kr)-0.0001 ; हिलियम (He)-0.0005 ; नियॉन (Ne)-0.0018 ; हाइड्रोजन (H)- 0.01 ; ऑर्गन (Ar)-0.9323 ; कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)- 0.03 ; ऑक्सीजन (O2)- 20.99 ; नाइट्रोजन (N)- 78.03
     
     उपरोक्त विभिन्न गैसों का अनुपात वायुमण्डल के सन्तुलन के लिए अतिआवश्यक है। इसके असन्तुलित होने से प्राणि जगत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है लेकिन मानवजनित स्रोतों या प्राकृतिक स्त्रोतों द्वारा विभिन्न गैसों के उत्सर्जन से वायुमण्डल की गैसों में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसका कि प्रतिकूल प्रभाव सम्पूर्ण प्राणि जगत् पर दृष्टिगत हो रहा है।

वायु के विभिन्न अवयवों का योगदान 

        मानव जीवन में वाय की महती भूमिका होती है। लेकिन मानव केवल वायु पर ही निर्भर नहीं रहता, आप में जो तमाम गैसे हैं वे मानव जीवन के विकास में उस पर पड़ने वाले प्रभाव में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। इनमें से कुछ गैसों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है -

ऑक्सीजन : किसी भी प्रकार के ज्वलन की क्रिया में ऑक्सीजन का होना परम आवश्यक है। जहाँ भी ईंधन के रूप में किसी भी पदार्थ का उपयोग किया जाता है वहाँ ऑक्सीजन अवश्य उपस्थित रहती है। यह मानव जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी है क्योंकि यह मानव के श्वसन प्रक्रिया का मुख्य स्रोत तथा साधन है।

नाइट्रोजन : इसका प्रमुख गुण यह है कि यह जलने की तेजी को कम करती है। इसी कारण सब चीजें आग पकड़ते ही बहुत तेजी से नहीं जलती नाइट्रोजन को सामान्यतः एक निष्क्रिय गैस माना जाता है। इसका विशिष्ट योगदान मिट्टी में मिलकर पौधों को जीवन देना होता है। 
कार्बन डाइऑक्साइड : कार्बन डाइऑक्साइड का विशेष गुण है कि वह स्वयं चौधों में समाहित हो जाती है और बदले में ऑक्सीजन उत्पन्न करती है जिससे प्राणी श्वसन क्रिया में इसका उपयोग कर सके। हरे पौधे सूर्य की रोशनी से ऊर्जा प्राप्त कर जल वाष्प और कार्बन डाइऑक्साइड से भोजन तैयार करते हैं जो शाकाहारी जीवों का जीवन आधार बनता है।

जलवाष्प : जलवाष्प के मुख्यतः दो प्रमुख कार्य हैं पहला यह वर्षा और पहाड़ों पर जमने वाले हिम के लिए आवश्यक है। दूसरा- यह कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिलकर पृथ्वी से लौट रही सूर्य की किरणों को रोककर उन्हें अवशोषित कर लेती है जिससे पृथ्वी को ताप मिलता हैं। इस ताप से अधिक पेड़ पौधों का उगना, प्राणि जगत को भोजन उपलब्ध कराना, वर्षा का होना आदि सम्बन्धित है।

ओजोन : ओजोन ऑक्सीजन का ही एक परिवर्तित रूप है जिसमें ऑक्सीजन के तीन अणु मिलते हैं। सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकने में इसी गैस का मुख्य योगदान है।
धूल के कण : धूल के कणों से कई लाभ होते हैं- प्रकाश की किरणों से उत्पन्न प्रकाश में इनकी सहायता से किसी भी वस्तु का दिखना सहज हो जाता है तथा यह वायु में रहकर उसे भारी। बनाता है जिससे उसका छितराना कम हो जाता है। हालांकि धूल कणों का वायु में रहना कोई अच्छी बात नहीं है क्योंकि यह वायु की शुद्धता को नष्ट कर देती है।

वायु प्रदूषण के प्रकार 

वायु प्रदूषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. कणरूपी वायु प्रदूषण :-
                                वायु में अनेक प्रदूषण ठोस में उड़ते रूप हुए पाए जाते हैं; जैसे-धूल, राख आदि। यह प्रदूषक बड़े और छोटे दोनों आकार के होते हैं और पृथ्वी की सतह पर फैलकर प्रदूषण फैलाते हैं। इस प्रकार का वायु प्रदूषण कणरूपी वायु प्रदूषण कहलाते हैं। 

2. रासायनिक प्रदूषण :- 
                             आज के आधुनिक उद्योगों में अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग होता है। इनमें कपड़ा उद्योग, कागज, चीनी, उर्वरक बनाने वाले उद्योग हमारे वायुमण्डल में विषैली रासायनिक गैस छोड़कर वायु को प्रदूषित करते हैं। 

3. गैसीय प्रदूषण :-
                      गैसों के निर्माण में अनेक प्रकार के प्राकृतिक तत्त्वों के मिश्रण का भी योगदान रहता है। मानव क्रियाओं द्वारा भी अनेक प्रकार की गैसों का निर्माण होता है। जब वायु में गन्धक, ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड ईंधन के जलने पर निकलने वाले धुएँ गैसों में मिल जाते हैं तो ऐस प्रदूषण गैसीय प्रदूषण कहलाता है। 

4. धुआँ धुंध व अन्य प्रदूषण :-
                                     वायुमंडल में धुआँ व कोहरा में विद्यमान जल की बूंदो के महीन कण के संयोग से धुंध  बनती है जो वायुमंडल में दृश्यता को कम कर घुटन पैदा करती हैं।

वायु प्रदूषण के स्रोत 

    वायु प्रदूषण उत्पन्न होने के अनेक कारण एवं खोत है, जिनका उल्लेख निम्नलिखित रूप से कि जा सकता है -

1.वाहनों द्वारा प्रदूषण : वाहनों से निकला हुआ धुआँ वायु प्रदूषण अधिक करता है। इनसे जो धुआँ निकलता है उसमें अनेक प्रकार को जहरीली गैसें होती हैं जो वायुमण्डल को दूषित कर देती है तथा वायुमंडल में जो गुणवत्ता है उसे समाप्त करने का कार्य करती हैं। इन वाहनों के धुएँ में सिसा, मोनोऑक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि जहरीली गैसें विद्यमान रहती हैं जो में घुलकर उसे दूषित कर देती हैं। कार से मोनोऑक्साइड, रेल इन्जन से कार्बन मोनोऑक्साइड वायु से सल्फर डाइऑक्साइड के साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन ऐल्डिहाइड आदि विषैली निकलती है जो वायु में मिल जाने के कारण वायु को प्रदूषित कर देती हैं।

2.औद्योगिक प्रदूषण: आधुनिक युग में उद्योगों की अधिकता इतनी अधिक हो गई है कि यह वायु प्रदूषण को सबसे अधिक प्रभावित करने का कार्य कर रहे हैं। ऐसे उद्योग मुख्यतः खाद कारखाना इस्पात, रासायनिक, चीनी, सीमेण्ट, पेट्रो रसायन आदि हैं। इस्पात उद्योग से कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, धूल के कण, उर्वरक उद्योग से नाइट्रोजन ऑक्साइड, पोटैशियमयुक्त उर्वरक में पोटाश के कण, सीमेण्ट उद्योग से कैल्शियम, सोडियम, सिलिकॉन के कण, ऐलुमिनयम के कण वायु में प्रवेश कर वायु का प्रदूषित कर देते हैं।

3.घरेलू प्रदूषण : भारत में आज भी खाना पकाने में जिस ईंधन या ऊर्जा का प्रयोग होता है उनमें से 90% भाग गैर वाणिज्यिक ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त होता है। इसके लिए अनेक प्रकार के अपशिष्ट ईंधन के रूप में प्रयोग करने पर जो धुआँ निकलता है वह वायु को प्रदूषित कर देता है।

4.व्यक्तिगत आदतें एवं कृषि क्रियाएँ : व्यक्तिगत आदतों में सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करने पर वायु में धुआँ बढ़ता है। इसी प्रकार घर का कूड़ा बाहर फेंकने पर वायु में कुछ कण प्रवेश करके वायु को प्रदूषित कर देते हैं। कृषि में प्रयुक्त होने वाले रसायन भी वायु प्रदूषण करने में सहायक होते हैं। कृषि की फसलों को अनेक हानिकारक जीव नुकसान पहुंचाते हैं, जीवनाशी रसायनों का आविष्कार होने से फसलों को कोड़ों से बचाने के लिए इनका छिड़काव फसलों पर किया जाता है जिनका कुछ अंश वायु में मिल जाता है जिससे वहाँ की वायु प्रदूषित हो जाती है।

5.प्राकृतिक स्त्रोतों एवं दुर्घटनाजनित प्रदूषण : अनेक प्रकार की प्राकृतिक विपदाओं जैसे- उल्कापात, ज्वालामुखी उद्गार आदि भी वायु में प्रदूषण फैलाने का कार्य करते हैं। कभी-कभी मानव की असावधानी से अनेक दुर्घटनाएँ; जैसे- आयुध सामग्री में आग लगना, गैस कुएँ में आग लगना, आणविक स्टेशन पर विस्फोट, युद्ध आदि वायु प्रदूषण के कारण बन जाते हैं जो वायु को प्रदूषित कर देते हैं। चरनोविल में आणविक विद्युतगृह में रिसाव, भोपाल गैस काण्ड आदि ऐसी ही घटनाओं के उदाहरण हैं।

वायु प्रदूषण का प्रभाव 

          वायु प्रदूषण सभी प्राणियों के समक्ष संकट उत्पन्न कर रहा है। इससे वृक्षों को जो गुणवत्ता है वह समाप्त होती जा रही है। मानव जीवन आवश्यक ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण अनेक बीमारियों दस्त होता जा रहा है चूंकि ऑक्सीजन जीवन का आधार है इसके बिना व्यक्ति एक भी जिन्दा नहीं रह सकता इसलिए उसे शुद्ध वायु मिलनी चाहिए। यही कारण है कि शुद्ध वायुकोजाता है। सामान्यतः वायुमण्डल में लगभग 21% ऑक्सीजन पाई जाती है। यदि इसकी मात्रा घटकर 12 से 15 तक हो जाए तब भी प्राणिमात्र के लिए कोई विशेष खतरा नहीं है। लेकिन यदि पाय में की मात्रा कम हो जाएगी तो अनेक प्रकार की बीमारियों जन्म लेने जैसे त्वचा रोग आदि। सूक्ष्म जीव कभी-कभी वायु में इतने अधिक हो जाते हैं है। मस्तिष्क ज्वर, जुकाम, सदी इन्फ्लुएन्जा आदि का सम्बन्ध वायुमण्डलीय सूक्ष्म जीवों में है। अ से अनेक प्रकार की महामारी फैला देते से वनस्पतियाँ प्रभावित होती हैं, पशुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है इससे चर्मरोग जैसी बीमारियों जन्म होती है। ऊपरी वायुमण्डल में विषैली गैसें ओजोन मण्डल को नष्ट कर रही है जिससे तापमान के बढ़ने का संकट पैदा हो रहा है। वायुमण्डल में बढ़ते हुए कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभाव ने हरितगृह प्रभाव को नष्ट करने का कार्य किया है। वायु प्रदूषण आज के परिवेश में आधुनिक औद्योगिक संस्कृति की देन है। वायु प्रदूषक कई प्रकार के होते हैं। कुछ विद्वानों ने इन्हें तीन रूपों- गैसीय वायु प्रदूषक, सूक्ष्मकण प्रदूषक और जैवीय प्रदूषक में विभाजित किया है। सुविधा की दृष्टि से इसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
 
1.प्राथमिक प्रदूषक : प्राथमिक प्रदूषक हानिकारक रसायन के रूप में होते हैं। यह प्राकृतिक घटना या मानव क्रिया-कलापों द्वारा सीधे वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं; जैसे-लकड़ी या कोयला जलाने पर कार्बन मोनोऑक्साइड का बनना।

2. द्वितीय स्त्रोत :  द्वितीय स्रोत के प्रदूषक दो या दो से अधिक घटकों के बीच हानिकारक रसायन प्रक्रिया के फलस्वरूप बनते हैं। जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड का ऑक्सीजन के साथ संयोग होने पर सल्फर डाइऑक्साइड बनती है।

3.प्राकृतिक प्रदूषक : प्राकृतिक प्रदूषक में ज्वालामुखी फटने, बिजली गिरने, प्राकृतिक रेडियो धर्मिता होने, वृक्षों की पत्तियों से वाष्पशील यौगिकों के निकलने आदि जैसे प्राकृतिक स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषक आते हैं। प्रकृति स्वयं ऐसे प्रदूषकों के साथ समायोजन करती है। 

वायु प्रदूषण को रोकने हेतु कानूनी उपाय 

         वायु प्रदूषण को रोकने हेतु भारत सरकार ने कुछ कानून निर्मित किए हैं जिनमें वायु प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम, 1981 उल्लेखनीय है। देश में वायु प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए लोकसभा द्वारा वायु प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम 1981 पारित किया गया। प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण मण्डल को इसी अधिनियम के अन्तर्गत वायु प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के क्रियान्वयन हेतु अधिकार प्रदान किए गए। विभिन्न राज्य सरकारें ने इस अधिनियम के आधार पर ही अपने-अपने राज्यों के लिए नियम बनाकर प्रदूषण नियन्त्रण की कार्यवाही कर रही हैं।
       अगला कानून पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 बनाया गया जिसमें पिछले बनाए गए नियमों का पालन न होने पर अनेक प्रकार के दण्ड की व्यवस्था की गई। इस अधिनियम के अनुसार, यदि प्रदूषणकर्त्ता नियमित चेतावनी के बाद भी प्रदूषण नियन्त्रण नहीं करता है तो उसे व उससे सम्बन्धित विभाग को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। प्रदूषणकर्त्ता को प्रसारित नियमों की अवहेलना करने पर भारी आर्थिक दण्ड और सजा का प्रावधान किया गया है जो एक लाख रुपये या 5 वर्ष की जेल या दोनों सजाएँ एक साथ हो सकती हैं। नियमों में यह भी प्रावधान है कि यदि इस सजा के बाद भी प्रदूषणकर्त्ता प्रदूषण जारी रखता है तो प्रदूषणकर्त्ता को 5,000 रुपए प्रतिदिन का आर्थिक दण्ड दिया जा सकता है तथा कैद की सीमा सात वर्ष की जा सकती है। इस दण्ड हेतु उद्योग के मालिक को ही केवल दोषी नहीं माना गया है। साथ ही मैनेजर तथा नियन्त्रक जो उद्योग की देखभाल करता है, वह भी इस श्रेणी में आता है।