अम्लीय वर्षा (Acidic Rain)


 

अम्लीय वर्षा    (Acidic Rain)

    वर्षा का जल जब जलमण्डल में उपस्थित गैसों के साथ होने वाली रासायनिक क्रिया के कारण अम्लीय होकर बरसता है तो ऐसी वर्षा अम्लीय वर्षा या अम्ल वर्षा कहलाती है। दूसरे शब्दों में विभिन्न उद्योगों की विविध उत्पादन प्रक्रियाएँ से निकली कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्स ऑक्साइड गैसें जब निकलकर वायुमण्डल में आती हैं, तो वहाँ वह जल वाष्प से मिलकर क्रमशः कार्बोनिक अम्ल, सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल बनाते हैं। यह गैसें परम्परागत ईंधन की दहन के फलस्वरूप तथा वाहनों से निकलने वाले धुएँ से भी निकलकर वायुमण्डल में जाकर मिलती हैं और वर्षा के साथ यह अम्ल पृथ्वी पर आ जाते हैं, इसे ही अम्लीय वर्षा कहा जाता है। अम्लीय वर्षा की समस्या उस समय प्रकाश में आई जब वर्ष 1972 में लन्दन के मैनचेस्टर नगर के कुछ लोग वर्षा के पानी में भीग रहे थे उसी समय रॉबर्ट एन्गस स्मिथ को वर्षा के जल में एसिड अर्थात् तेजाब की स्थिति का एहसास हुआ। उन्होंने उसी समय वर्षा से प्राप्त होने वाले जल का परीक्षण किया और उसके अम्लीय होने की बात बताई। उन्होंने वर्षा से प्राप्त जल का विधिवत परीक्षण किया और बताया कि जीवाश्म ईंधन के दहन से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड के कारण अम्ल वृष्टि की स्थिति उत्पन्न हुई है। वैज्ञानिक परीक्षणों से भी यह बात प्रकाश में आई कि सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) दोनों कारखानों के जलते ईंधन के कारण निकलने वाले धुएँ के रूप में अर्थात् सूक्ष्म कणों के रूप में वायु और मेघों में जमा हो जाते हैं और रासायनिक क्रिया के कारण ये सल्फ्यूरिक अम्ल या नाइट्रिक अम्ल के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं और जब ये अम्ल वर्षा के जल के साथ मिलकर पृथ्वी पर बरसते हैं तो ऐसी वर्षा को अम्लीय वर्षा कहा जाता है। वायु प्रदूषकों द्वारा अम्ल वर्षा तब की जाती है जब मानवजनित स्रोतों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड (SO) वायुमण्डल में पहुँचकर जल से मिलकर सल्फेट तथा सल्फ्यूरिक अम्ल (H. SO) का निर्माण करती है। अम्लीय वर्षा से सम्बन्धित जल का PH मान 5 से 2.5 के मध्य हो जाता है। जल का PH मान तटस्थ रूप में 7.0 होता है। इससे कम मान अम्लता और अधिक मान क्षारीयता का प्रतीक होता है।

               अम्लीय वर्षा से जमीन की मिट्टी में अम्लीयता बढ़ जाती है और pH मान में कमी होने के कारण मिट्टी के उपजाऊपन पर इसका प्रभाव पड़ता है। इससे बड़े-बड़े भवन इमारतों का क्षय होने लगता है.. जंगल नष्ट हो जाते हैं, पानी दूषित हो जाता है तथा उगने वाले अनाज भी दूषित हो जाते हैं।


अम्लीय वर्षा के कारण 

      अम्लीय वर्षा मुख्य रूप से औद्योगिक इकाइयों के ही परिणाम है। विभिन्न औद्योगिक इकाइयाँ, बिजलीघरों, वाहनों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड गैसें लगातार वायुमण्डल में प्रवेश कर रही हैं। वायुमण्डल में मिलकर इन गैसों का अम्लीयकरण हो जाता है और यह अम्ल वर्षा के जल के साथ मिलकर पृथ्वी के जैवमण्डल को क्षति पहुँचाती हैं। 

अम्लीय वर्षा में मुख्यतः तीन प्रकार के अम्ल होते हैं -


(i) सल्फर डाइऑक्साइड से गंधक का तेजाब

(ii) नाइट्रोजन ऑक्साइड से शोरे का तेजाब 

(iii)कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बोनिक एसिड

       कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्पन्न होने का मुख्य स्रोत जीवाश्म ईंधन का दहन है, जबकि सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों का अधिक भाग स्वचालित वाहनों के उत्सर्जन तथा कारखानों एवं उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ हैं। 

अम्लीय वर्षा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है -

1. शुष्क वर्षा : सल्फेट और नाइट्रेट धूल के कणों के साथ मिलकर पृथ्वी की सतह पर पहुँचकर जम जाते हैं तो ऐसी वर्षा को शुष्क अम्लीय वर्षा कहते हैं। 

2.नम अम्लीय वर्षा : जब सल्फ्यूरिक नाइट्रिक और हाइड्रोक्लोरिन अम्ल वर्षा के साथ मिलकर उसकी अम्लीयता को बढ़ा देते हैं तो ऐसी वर्षा को नम अम्लीय वर्षा कहते हैं।


अम्लीय वर्षा से हानि

        अम्लीय वर्षा से वन संसाधनों, प्राणियों के स्वास्थ्य, मिट्टी की उत्पादकता आदि को हानियाँ हो रही हैं। इनसे होने वाली हानियों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत रखा जा सकता है - 

वनस्पति जगत् की हानि: अम्लीय वर्षा से जलीय और थलीय दोनों प्रकार की वनस्पतियों को हानि पहुँचती है। अम्लीय वर्षा से पेड़ों की पत्तियाँ जल जाती हैं, पत्तों के रंग उड़ जाते हैं, ऊपरी सिरे नष्ट होने लगते हैं, उनके नुकीले हिस्से जलकर टेढ़े हो जाते हैं और तने कमजोर हो जाते हैं जिससे पेड़ जल्दी गिर जाते हैं। अम्लीय वर्षा का सीधा प्रभाव मिट्टी की उर्वरक क्षमता पर पड़ता है। मिट्टी में विद्यमान अघुलनशील ऐलुमिनियम अम्लीय वर्षा से घुलनशील बन जाता है जिससे मिट्टी के रासायनिक स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है। इनसे वृक्षों की शक्ति कम हो जाती है। फसलों के लिए आवश्यक जीव होते हैं। वे भी अम्लीय वर्षों से नष्ट हो जाते हैं।

जीव-जन्तुओं को हानि : अम्लीय वर्षा से अनेक जीव-जन्तुओं को हानि पहुँचती है। इनसे या तो वे घातक बीमारी के शिकार हो जाते हैं या तो मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अम्लीय वर्षा का जल, जलाशयों नदियों एवं समुद्र पर भी अपना बुरा प्रभाव डालता है। इससे इसमें रहने वाले जीव-जन्तु या तो रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं या मर जाते हैं, जिसका पारिस्थितिकी तन्त्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

भवनों एवं इमारतों को हानि : अम्लीय का जलवाणिजगत् को ही नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि यह ऐतिहासिक भवनों एवं इमारतों को भी नुकसान पहुंचाता है। जब अम्लीय वर्षा का अम्ल भवनो इमारतों पर गिरता है तो सामान्यतया यह इमारत की सामग्री से क्रिया करता है। विश्व के अनेक ऊंचे-ऊंचे स्मारक, भवन, आलीशान इमारतें इसका शिकार बन रही है। इसी के प्रभाव के कारण ही विश्व प्रसिद्ध आगरा के ताजमहल का रंग पीला पड़ता जा रहा है। इस प्रकार विश्व की अनेक ऐतिहासिक धरोहरे कुप्रभावित हो रही हैं। इनका स्थायी समाधान न होने के कारण यह चिन्ता का विषय बना हुआ है।

मानव स्वास्थ्य को हानि : पर्यावरण में उपस्थित किसी भी गैस की आवश्यकता से अधिक होना हानिकारक होता है। अम्लीय वर्षा के कारण वातावरण में कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइ नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि गैसे अधिक मात्रा में मिल जाती हैं, जो पातक हैं सल्फर डाइऑक्साइड अन्य गैसों की अपेक्षा अधिक खतरनाक होती है। इन्हीं गैसों के कारण मानव के फेफड़ों के रोग, त्वचा के रोग, अस्थमा, आँखों के रोग आदि होते हैं। यह गैसें मनुष्य को केवल शारीरिक रूप से प्रभावित नहीं करती अपितु मानसिक स्वास्थ्य एवं कार्यक्षमता को भी हानि पहुँचाती हैं।


अम्लीय वर्षा की रोकथाम के उपाय

 यद्यपि इस समस्या को पूरी तरह से हल तो नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ उपायों द्वारा इसे कम किया जा सकता है। अम्लीय वर्षा किसी एक देश की नहीं। अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए एक विकट समस्या है। इसकी रोकथाम के लिए अनेक संधियाँ और सम्मेलन समय-समय पर होते रहे हैं। इस सन्दर्भ में वर्ष 1983 में स्वीडन में एक बैठक बुलाई गई थी। जिसमें कनाडा, स्वीडन, आस्ट्रिया, जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड, फिनलैण्ड आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस बैठक में वर्ष 1993 तक सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन की मात्रा में 30% तक की कमी। लाने का निर्णय लिया गया और सन्धि पर हस्ताक्षर भी किए गए। इसी प्रकार की एक और सन्धि वर्ष 1985 में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर की गई। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए बुल्गारिया (सोफिया) में 1 नवम्बर, 1998 को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके अतिरिक्त अम्लीय वर्षा को रोकने के लिए कोयले के उपयोग को कम करने तथा विद्युत ऊर्जा तथा परमाणु ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि लाने पर बल दिया गया और उपर्युक्त उपायों के साथ-साथ जनजागरूकता फैलाकर भी इस दिशा में कुछ हद तक सफलता पाई जा सकती है।


अम्लीय वर्षा को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाए किए जा सकते हैं -

(i) उद्योगों में स्क्रबर्स (Scrubbers) के उपयोग से उत्सर्जित होने वाली SO, गैस के स्रोत पर ही रोक लगा दिया जाए।

(ii) दो पहिया वाहनों का उपयोग कम किया जाए।

(iii) कारों में Catalytic Converter लगाए जाएँ।

(iv) ऐसे ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग कम किया जाए जिससे SO. या NO का उत्सर्जन अधिक हो। 

(v) पानी और मिट्टी में चूने का उपयोग किया जाए, जिससे उनकी अम्लीयता कम हो सके।