पर्यावरण तथा शिक्षा में सम्बन्ध (Relationship between Environment and Education)




         पर्यावरण शिक्षा हमें पर्यावरण की गुणवत्ता और जीवन की गुणवत्ता प्रदान करती है। पर्यावरण और शिक्षा दोनों में विकास को महत्त्व दिया जाता है। पर्यावरण में जहाँ वातावरण की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जाती है वहीं शिक्षा में व्यक्ति की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जाती है। एक तरफ शिक्षा को विकास की प्रक्रिया कहते हैं तो दूसरी तरफ पर्यावरण अनुष्य तथा अन्य प्राणियों की अभिवृत्ति तथा विकास को प्रभावित करता है क्योंकि इसमें आन्तरिक और बाह्य दोनों परिस्थितियाँ सम्मिलित होती हैं। प्रत्येक प्राणो किसी-न-किसी पर्यावरण से सम्बन्धित होता है। इसमें मनुष्य का पर्यावरण सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक तथा भौतिक होता है। इसलिए शिक्षा द्वारा इनमें गुणवत्ता लाने के लिए सुधार एवं परिवर्तन किया जाता है। इससे मनुष्य तथा बालक में वांछित परितर्वन लाया जा सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि मनुष्य तथा बालकों के व्यवहार परिवर्तन में पर्यावरण का विशेष महत्त्व होता है।। मनोवैज्ञानिकों ने भी इस बात का समर्थन किया है। मनोवैज्ञानिक वाटसन ने कहा भी है कि पर्यावरण द्वारा बालक को जैसा चाहे वैसा बना सकते हैं, वंशानुक्रम में इसका कोई महत्त्व नहीं है।

             बर्नार्ड ने पर्यावरण और शिक्षा के सम्बन्ध में विशेष कार्य और प्रदर्शन किया है। उनका कहना है कि शिक्षा द्वारा विकास की क्रिया का सम्पादन कक्षा तथा विद्यालय के अन्तर्गत होता है। कक्षा में छात्र और शिक्षक के बीच अन्तः क्रियाएँ होती हैं। शिक्षक कक्षा में अपने प्रकरण की सहायता से अन्तःक्रियाएँ करता हैं जो शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों रूपों में होती हैं। इन क्रियाओं से सामाजिक तथा संवेगात्मक वातावरण की उत्पत्ति होती है। इससे छात्रों को कुछ करने का अवसर प्राप्त होता है और वे नया अनुभव प्राप्त करते हैं। इससे उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन होता है। अभिभावक या छात्रों के माता-पिता उत्तम पर्यावरण की प्राप्ति के लिए ही अपने पाल्यों को अच्छी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश दिलाना चाहते हैं। इस तरह से शिक्षा की प्रक्रिया के विकास का सम्पादन भौतिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक वातावरण में होता है।शिक्षा के द्वारा विविध प्रकार की समस्याओं का अध्ययन तथा समाधान किया जाता है। अधिकांश समस्याएं छात्रों तथा वातावरण (पर्यावरण) से सम्बन्धित होती हैं। शिक्षक उनका समाधान औपचारिक तथा अनौपचारिक ढंग से करता है। यह वातावरण और परिस्थिति को समझकर ठोस हल प्रदान करता है। इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण में वातावरण तथा आन्तरिक और बाह्य सम्पूर्ण परिस्थितियों को सम्मिलित किया जाता है और शिक्षा इनका विकास कर इनको आगे बढ़ाने की प्रक्रिया का कार्य करती है। इस प्रकार शिक्षा के विकास की प्रक्रिया का सम्पादन गुणवत्ता पर्यावरण द्वारा ही सम्भव होता है। अतः कहा जा सकता है कि पर्यावरण तथा शिक्षा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा है, एक के अभाव में दूसरा सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता है; अतः इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध है।