पर्यावरणीय शिक्षा की अवधारणा (Concept of Environmental Education)



              शिक्षा अध्ययन के विषय में पर्यावरणीय शिक्षा एक अतिमहत्त्वपूर्ण पहल है जिसकी प्रकृति अन्तःअनुशासन पर आधारित है। छात्रों, प्राध्यापकों और प्रशिक्षणार्थियों के लिए पर्यावरण शिक्षा नया और विकसित क्षेत्र है। आज प्रत्येक क्षेत्र में तेजी से विकसित होने के कारण पर्यावरण के आन्तरिक और बाह्य समस्याओं का समाधान अवश्यम्भावी हो गया है।
      इसमें कोई सन्देह नहीं कि 'पर्यावरण की गुणवत्ता के बारे में चिन्तन सर्वप्रथम वैज्ञानिकों ने ही शुरू किया और अनवरत प्रयास के फलस्वरूप इन्होंने न केवल समाज के सभी वर्गों बल्कि पूरे विश्व में पर्यावरण की गुणवत्ता का स्थान निर्धारित करते हुए इसे वृहद् विचार-विमर्श का विषय बनाया। विगत कुछ वर्षों से साधारण लोगों ने अपनी भागीदारी के साथ पर्यावरण की समस्याओं को ढूँढ़ने में अपनी रुचि और रुझान भी दिखाया। यद्यपि यह भागीदारी, रुचि पर्यावरण की गुणवत्ता को प्राप्त करने के लिए काफीनहीं थी। अतः कुछ पर्यावरणविद सामाजिक कार्यकर्त्ता और प्रबुद्ध लोगों ने पर्यावरण की समस्या को दूर करने के लिए अपने आपको शामिल करने का सुझाव दिया, जो एक महत्वपूर्ण पहल थी। 29 जून, 1971 को निकासन (Nicholson) ने 'पर्यावरणीय भविष्य के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन (फिनलैण्ड) में अपने शोधपत्र के माध्यम से बताया कि पर्यावरण की गुणवत्ता की आवश्यकता दो बातों पर निर्भर है -

(1) तथ्यों की जानकारी 

(2) अभिवृत्तियों में परिवर्तन 

            अतः बातों को सही रूप से जानने और जानकारी के आधार पर अपनी विचारधारा में परिवर्तन का सकने की क्षमता उत्पन्न करने, जिससे समस्याओं का हल खोजा जा सके, पर्यावरण शिक्षा का प बनता है।

वर्ष 1991 में बरकतुल्लाह वि०वि० भोपाल में "इनवायरनमेण्टल एण्ड बीहैवियर! चैलेन्ज एण्ड पॉसिबिलिटी" नामक सेमीनार में पर्यावरण की समस्या के कुछ उदाहरण इस प्रकार दिए गए -

1. भीड़ : किसी एक शहर के मोहल्ले में जिसकी आबादी का घनत्व काफी सघन है, काफी सारे लोग इस प्रकार एकत्र हो गए हैं। 

(i) क्या यह सामान्य लोगों का समूह है या ये किसी विशेष प्रयोजन से इकट्ठे थे।

(ii) इनकी वास्तविक मंशा क्या है?

(iii) क्या कोई उपद्रव की सम्भावना है?

(iv) इसे किस प्रकार सन्तुलित किया जा सकता है? 

(v) आप वहाँ उपस्थित रहकर क्या कर सकते हैं?


2. प्राकृतिक संसाधनों की कमी : यहाँ पूरे विश्व में महसूस किया जा रहा है कि निरन्तर प्रतिदिन प्राकृतिक संसाधनों की कमी होती जा रही है। देशों में अनियन्त्रित और अनियोजित योजनाओं के कारण यह समस्या और बढ़ती ही जा रही है। तब -

(i) किन-किन प्राकृतिक संसाधनों की बात इसमें सम्मिलित है?

(ii) प्राकृतिक सांसधनों की आज की स्थिति क्या है? 

(iiii) विश्व के विभिन्न देश इनका उपभोग किस प्रकार कर रहे हैं?

(iv) समस्या का कारण कहाँ से शुरू हुआ दिखता है ? 

(v) इस समस्या के निवारण का तरीका या सुझाव क्या है?

(vi) क्या आपकी इसमें कोई सक्रिय भूमिका हो सकती है? 

(vii) शासन से आप क्या अपेक्षा करते हैं?

        उपर्युक्त इन दो उदाहरणों यह बात स्पष्ट है कि पर्यावरण की समस्या के पीछे वास्तविक तथ्य क्या हैं? आपका इस समस्या को सोचने का तरीका क्या है? और उसका हल कैसे सम्भव है? पर्यावरण शिक्षा से ही इन समस्याओं का समाधान सम्भव है। यही पर्यावरण शिक्षा की अवधारणा हैं।