पर्यावरणीय शिक्षा का अर्थ (Meaning of Environmental Education)


 


पर्यावरणीय शिक्षा की अवधारणा के आधार पर 'पर्यावरण शिक्षा' की परिभाषा को यद्यपि एक स्पष्ट दिशा मिलती है और इसकी सीमाओं को भी काफी सीमित कर दिया गया है, लेकिन जैसे पर्यावरण के क्षेत्र का विस्तार विचारकों की निगाह में आ रहा है वह जीवन पद्धति के हर पहलू को मानव के करीब जोड़ने लगे हैं। उसी प्रकार पर्यावरण शिक्षा के अर्थ और नई-नई परिभाषाएं आ रही हैं। पर्यावरण शिक्षा के महत्वपूर्ण अर्थ को समझने के लिए हम यहाँ पर्यावरण शिक्षा के क्रमशः शाकि और वास्तविक अर्थ तथा विभिन्न संस्थाओं और विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं पर विचार करेंगे जिससे इसका ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। 


पर्यावरण शिक्षा का शाब्दिक अर्थ

            शब्द-रचना की दृष्टि से पर्यावरणीय शिक्षा दो शब्दों पर्यावरण शिक्षा के योग से मिलकर बना है। पर्यावरण का अर्थ उन बाहा, प्राकृतिक, भौतिक, जैविक तथा मानवीय घटकों के सामूहिक नाम से है जो मनुष्य को चारों ओर से आवृत्त या ढके हुए हैं और शिक्षा का अर्थ जानना या ज्ञान प्रदान करता है। अर्थात् वह शिक्षा जो हमें पर्यावरण का ज्ञान प्रदान करती है, पर्यावरण शिक्षा कहलाती है।


पर्यावरण शिक्षा का वास्तविक अर्थ 

       पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी व समझ उत्पन्न करने की प्रक्रिया है। यह वह शिक्षा है जो पर्यावरण के माध्यम से, पर्यावरण के विषय में, पर्यावरण के लिए होती है। इस प्रक्रिया में पर्यावरण और मनुष्य के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों, पर्यावरण के संरक्षण व संवर्धन की शिक्षा दी जाती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण के बारे में जानकारी, अवबोध, रुचियों अभिवृत्तियों, कौशलों व जागरुकता के विकास सम्बन्धी क्रियाओं की शिक्षा है। उपर्युक्त कथनों से हमारे सामने तीन बातें स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती हैं -


(1) पर्यावरण के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है।

(2) पर्यावरण के विषय में दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है। 

(3) पर्यावरण के लिए दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है।


1. पर्यावरण के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है :- प्राचीन समय में पर्यावरण शिक्षा औपचारिक रूप से नहीं दी जाती थी। मनुष्य की दैनिक क्रियाओं एवं व्यवहार में पर्यावरणीय मूल्यों के माध्यम से परिवर्तन, परिष्करण एवं परिमार्जन किया जाता था। प्रकृति की आवश्यकता और महत्ता को बताकर पर्यावरण की शिक्षा दी जाती थी। वैदिक काल में प्रकृति द्वारा प्रदत्त ऐसी चीजों को जो पर्यावरण को संरक्षित रखती थीं. को श्रद्धा का पात्र बनाकर उन्हें देवतुल्य रूप प्रदान किया गया था। अनेक वैदिक ऋचाओं में इस तरह की सूक्ति देखने को मिलती है। 'ऋग्वेद' की एक ऋचा में कहा गया है, "हमारी दैवीय नदियाँ हमारी रक्षा के लिए दयामयी बनी रहें, वे हमें पीने के लिए जल प्रदान करती रहें और हम पर आनन्द और खुशियाँ बरसाती रहें। हमारी बहुमूल्य निधियों और मानव की विधाता है नदियों! हम तुम्हारे आरोग्य जल के आकांक्षी हैं।" कहने का तात्पर्य यह है कि प्राचीन काल में पर्यावरण के माध्यम से पर्यावरण की शिक्षा दी जाती थी।


2. पर्यावरण के विषय में दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है :- पर्यावरण शिक्षा, पर्यावरण के बारे में पर्याप्त समझ उत्पन्न करने की एक सम्पूर्ण प्रक्रिया को क्रियान्वित करती है। हम पर्यावरणीय ज्ञान, कौशल तथा प्रत्ययों का विकास पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से ही करते हैं जो शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों द्वारा पर्यावरण से सम्बद्ध रहती है। पर्यावरण शिक्षा, पर्यावरण के विभिन्न घटकों तथा मानव से उसके अटूट सम्बन्ध की जानकारी प्रदान करती है। इस सन्दर्भ में डॉ० विद्यानिवास मिश्र ने कहा है, "प्रकृति की संवेदनशीलता मानव को प्रभावित करती है, किन्तु जहाँ औद्योगिक विकास से अन्धे मानव ने प्रकृति को चुनौती माना और उस पर विजय प्राप्त करने की इच्छा करने लगा, यहीं से मानस और प्रकृति का संघर्ष शुरू हुआ, जिसका परिणाम हम सबके सामने है।"

         पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत छात्रों को पर्यावरणीय समस्याओं से अवगत कराया जाता है। इन समस्याओं के समाधान एवं उपचारात्मक कार्यक्रमों का ज्ञान कराया जाता है। इसमें पर्यावरण के तथा अजैविक घटकों के विषय में ज्ञान प्रदान किया जाता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं, उनसे अवगत कराया जाता है। पर्यावरण, शिक्षा में पारिस्थितिकी पोषक स्तरों, ऊर्जा प्रवाह एवं खाद्य श्रृंखलाओं के विषय में भी ज्ञान प्रदान किया जाता है, अतः इन कथनों मे स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण के विषय में दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है।


3. पर्यावरण के लिए दी जाने वाली शिक्षा पर्यावरण शिक्षा है :- नागरिकों में पर्यावरणीय जागरुकता, रुचि, रुझान, आवश्यकता, कौशल, मूल्य आदि का विकास करना ही पर्यावरण शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य है। पर्यावरण शिक्षा का कार्य नागरिकों में यह भावना जागृत करना है कि पर्यावरण मानव का अंग है। वर्तमान में अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ: जैसे-वनोन्मूलन, हरित गृह प्रभाव, जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिकीकरण, पर्यावरण प्रदूषण, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का इस आतंकवादिता आदि का अध्ययन पर्यावरण शिक्षा के बिना हो ही नहीं सकता। क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य, मानव व्यवहार के परिवर्तन एवं समस्याओं से अवगत होता है। शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य का मानसिक एवं बौद्धिक विकास होता है, जिससे उसमें सृजनात्मकता, चिन्तनशीलता, तर्कशक्ति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि का विकास होता है। पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए इन सब चीजों (तर्कशक्ति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, चिन्तनशीलता, सृजनात्मकता का होना परम आवश्यक है। जब तक इन सब चीजों का विकास नहीं होगा तक तक मनुष्य पर्यावरणीय समस्याओं को समझकर उनको सुलझाने के लिए क्रियाशील नहीं हो पाएगा। पर्यावरण शिक्षा द्वारा नागरिकों में पर्यावरण के प्रेम और संरक्षण की भावना का विकास किया जाता है। परिणामस्वरूप मनुष्य में पर्यावरणीय मूल्यों का विकास होता है जिसके फलस्वरूप पर्यावरण संरक्षित एवं सम्वर्द्धित होता है। अतः इन कथनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण के लिए दी जाने वाली शिक्षा, पर्यावरणीय शिक्षा है।

          पर्यावरणीय शिक्षा की विषय-वस्तु अत्यन्त वृहद् और व्यापक है। पर्यावरणीय शिक्षा को परिभाषित करना एक दुरूह कार्य है, फिर भी पर्यावरणीय शिक्षा के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं, जो इस प्रकार हैं -


              यूनेस्को के अनुसार, "पर्यावरणीय शिक्षा व्यक्ति, प्रकृति एवं समाज के प्रति अपने कर्त्तव्यों का बोध कराते हुए पर्यावरण सुधार हेतु प्रेरणा प्रदान करती है।"


                रेनहाल्ड ई० लॉब के अनुसार, “हमारे देश में पर्यावरण शिक्षा औद्योगिक संस्थाओं से जीवन बचाने के संकट से बचने की शिक्षा है और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लोगों के ज्ञान और व्यवहार में जीवन-पर्यन्त परिवर्तन लाने की ओर उद्देशित है।"


                चैपमेन टेलर के अनुसार, "पर्यावरणीय शिक्षा का अभिप्राय सद्नागरिकता विकसित करने के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पर्यावरणीय मूल्यों एवं समस्याओं पर केन्द्रित करना है, ताकि सदनागरिकता का विकास हो सके तथा अधिगमकर्त्ता पर्यावरण के सम्बन्ध में भिज्ञ, प्रेरित तथा उत्तरदायी हो सके।"


          एच०टी० हेवावासम के अनुसार, "पर्यावरण शिक्षा का मुख्य प्रयोजन नागरिकों के उत्तरदायित्वों में पर्यावरण की सुरक्षा और प्रबन्ध के बारे में जागति पैदा करना है और उसे बढाना हैं।"


          एस०वी० चितीबाबू के अनुसार, "शिक्षा और पर्यावरण के बीच संक्रिया पर्यावरण शिक्षा की जन्म देती है।"


         राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के महानिदेशक लक्ष्मीधर मिश्र के अनुसार, पर्यावरण शिक्षा सभी प्राकृतिक संसाधनों की समग्रता का नाम है जो धरती माता ने मानव जाति के वरदान के रूप में प्रदान किए हैं। ये संसाधन हैं- जमीन, जल, वायु, वनस्पति, वन और वन्यजीव, जो हमें घेरे हुए हैं और ज प्रतिदिन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।"


        इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि पर्यावरणीय शिक्षा का तात्पर्य शिक्षा से है जिसके द्वारा बच्चों, युवकों और प्रौढ़ों को प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्रकृति प्रदूषण के कारणों और उनके दुष्परिणामों से परिचित कराया जाता है। इसके साथ ही उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रकृति प्रदूषण की रोकथाम की विधियाँ बताई जाती हैं।

      इस आधार पर कुक तथा हैरन (1971) ने पर्यावरणीय शिक्षा की कुछ प्रमुख विशेषताओं का ल्लेख किया है-


(i) पर्यावरण शिक्षा समस्या केन्द्रित होती है।

(ii) इसके अन्तर्गत मूल्यों का अभिविन्यास किया जाता है।

(iii) पर्यावरण शिक्षा अन्तः अनुशासन आयाम पर आधारित है।

(iv) यह शिक्षा भविष्य की ओर उन्मुख होती है। 

(v) पर्यावरण शिक्षा से भविष्य का भी अभिविन्यास किया जाता है।

(vi) छात्रों के स्वोपक्रम, कौशल तथा क्रियाओं का सम्मिलित किया जाता है।